मेरे दिल को दुखाता है कभी कोई कभी कोई
नया ग़म देके जाता है कभी कोई कभी कोई
सियासी खेल के मोहरे हैं ये मुफ़लिस इन्हें यारों
बिसातों पर सजाता है कभी कोई कभी कोई
ज़रा सा वक्त क्या बदला सभी के पर निकल आये
हमें आंखें दिखाता है कभी कोई कभी कोई
करें दिल की हिफ़ाज़त दोस्तों आखिर कहां तक हम
ये शीशा तोड़ जाता है कभी कोई कभी कोई
हमारे प्यार के दुश्मन हमें मिलने नहीं देते
उन्हें पट्टी पढ़ाता है कभी कोई कभी कोई... यह ग़ज़ल अब्दुल रहमान मंसूर के ग़ज़ल- संग्रह 'तेरी खुशबू अभी रूमाल में है' से ली गई है, जिसका संपादन ओम निश्चल ने किया. इस संग्रह को सर्वभाषा ट्रस्ट ने 'सर्वभाषा ग़ज़ल सीरीज़' के तहत प्रकाशित किया है. कुल 120 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 199 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा ग़ज़लें सिर्फ़ साहित्य तक पर.