उस दा मुख इक जोत है, घुंघट है संसार
घुंघट में ओह छुप्प गया, मुख पर आंचल डार.
***
उन को मुख दिखलाए हैं, जिन से उस की प्रीत
उनको ही मिलता है वोह, जो उस के हैं मीत.
***
ना खुदा मसीते लभदा, ना खुदा विच का'बे
ना खुदा कुरान किताबां, ना खुदा निमाज़े.
***
बुल्लया अच्छे दिन तो पिच्छे गए, जब हर से किया न हेत
अब पछतावा क्या करे, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत..
पंजाब के महान सूफी संत बुल्ले शाह जो 1680 से 1758 के बीच इस धरती पर रहे, की कविता ने सदियों से अपना स्थायी प्रभाव छोड़ा है. युवकों में उनका अलग आकर्ष्ण है, तो गीतकारों और बौद्धिकों में अलग. उनके दोहे, शायरी, नज़्म ने दुनिया भर के प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर खिंचा है. उनकी कविताएं जितनी भावनात्मक तीव्रता और जोश से भरी हैं, उतनी ही धार्मिक हठधर्मिता के खिलाफ विद्रोह और गुस्से से भी भरी हैं. वे अपने अनुयायियों और पाठकों को जीवन के उद्देश्य और मृत्यु की निश्चितता पर गहन चिंतन के लिए बाध्य करते हैं. मंजुल बजाज ने 'The Book of Bullah: A Selection of Verses' में बुल्ले शाह की कविताओं, प्रतीकों, रूपकों और रूपांकनों का ताजा और स्पष्ट अनुवाद अंग्रेजी में किया है.
आज की किताबः 'The Book of Bullah: A Selection of Verses'
लेखक: मंजुल बजाज
भाषा: अंग्रेज़ी
विधा: अनुवाद
प्रकाशक: Amaryllis | मंजुल पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्या: 234
मूल्य: 399
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.