मैंने उस चित्र को उसी तरह समझा
जैसे समझना चाहती थी उसमें बैठी
नंगी पीठ वाली लड़की
कि जहां कहीं भी टांगी जाएगी यह तस्वीर
वहीं बना लेगी वह एक खिड़की
जब बाक़ी लोग देख रहे होंगे उसकी पीठ
वह देख रही होगी बाहर कोई दृश्य
मैंने उस चित्र को जब दोबारा देखा
उसमें मुझे कई और लड़कियां दिखीं
ढंके बांहों से कभी मुख कभी स्तन
ऐंठे उनके बदन पर थीं लेटी सर्प-सी उनकी नसें
दिखीं वे खुद इतनी बेचैन मानो
अब उठ खड़ी होंगी और निकल जायेंगी
अपनी-अपनी खिड़कियों से बाहर
मिल जायेंगी अपने-अपने दृश्यों में
बाद में और उस चित्र में सिर्फ़ खिड़कियां ही थीं
लड़कियां जा चुकी थीं
नंगी पीठ वाली लड़की भी कहीं नहीं थी
खिड़कियों से लगे लहराते पर्दे थे
नंगापन ढंकने को आतुर
जिसे झाड़ चुकी थी अब देह
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आज की किताबः 'अपने जैसा जीवन'
लेखक: सविता सिंह
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: राधाकृष्ण प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 104
मूल्य: 199
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.