तुम्हें पाने की इच्छा में
जब तक ख़ुशी से झूमता नहीं
दे दो इजाज़त मुझे तब तक
तुम्हारे दर्द में पालूं सुख सारे जहां का।
नीबू के दरख्त चमेली की गन्ध
देकर एक-दूसरे को हाथ अपना
जी रहे हैं हम इस तरह जैसे
एक जान दो क़ालिब हों!
झुटपुटे से झुटपुटे तक
मेरी विलियम गोलियां, मेरे कलंक
सब मेरे अन्दर हैं
फिर भी मैं तन्हा हूं?
मगर मेरे प्यार!
तुम्हारी दूरी के बावजूद तुम
मुझमें बसे हुए हो
इस तरह से जैसे
तुम थे, तुम कभी नहीं थे
शायद !
यही प्यार है!
यह कविता रोमा में पैदा हुए समी-अल-कासिम की है, जिसे वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा ने अपनी पुस्तक 'फ़िलिस्तीन: एक नया कर्बला' में शामिल किया है. यह पुस्तक इज़रायल और फ़िलिस्तीन समस्या का एक सम्पूर्ण मानवीय और संवेदनात्मक अध्ययन है. पुस्तक को पढ़कर इस इलाके के राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक और भावनात्मक पहलुओं को बारीक़ी से समझा जा सकता है.
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आज की किताबः 'फ़िलिस्तीन: एक नया कर्बला'
लेखक: नासिरा शर्मा
भाषा: हिंदी
विधा: समसामयिक
प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 271
मूल्य: 350
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.