तुझे सोचकर आज फिर दृगों से छलक पड़े हैं नीर
जिसने जिस्म सदा छुआ है वो क्या समझे इश्क की पीर
मेरे मन मंदिर की देवी थी तुझे पूजता रहा हूं मैं
भीलनी द्वार खड़े हों जैसे कौशल्या रघुनंदन वीर... 'साहित्य आज तक लखनऊ 2024' में हुए माइक के लाल में सुनें अमित कुमार की शानदार कविता सिर्फ साहित्य तक पर.