जिन सुबहों में मैंने किया तुम्हारा इंतजार... Jitendra Shrivastav संग्रह 'काल मृग की पीठ पर' | EP 978 | Tak Live Video

जिन सुबहों में मैंने किया तुम्हारा इंतजार... Jitendra Shrivastav संग्रह 'काल मृग की पीठ पर' | EP 978

हर दुख बीतता है

जैसे बीत जाती है कोई कठिन ऋतु

जैसे एक दिन उत्तर जाता है ज्वर

फिर सामान्य करते हुए देह को


धीरे-धीरे चली जाती है

देह में भर आई खरखराहट

कहीं उभरती है

किसी अदेखे छोर से एक मुस्कुराहट


मद्धिम पड़ जाता है दर्द का नगाड़ा

गुनगुना उठता है मन का हारमोनियम

उस अलस भोर में

अब तक न गाया गया कोई राग


खिड़की से धीरे-धीरे आती है दबे पांव

किसी नवजात के तलुओं सी

मुलायम, पवित्र और उम्मीदों से भरी फूलों की खुशबू


मैं देख पाता हूं इस जीवन में पहली बार

काया कमनीय हवा की

जैसे प्रिया हो खड़ी मेरे कांधे पर रखे हुए हाथ

जैसे अमृत सा मिला है उसका साथ...


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आज की किताबः काल मृग की पीठ पर

लेखक: जितेन्द्र श्रीवास्तव

भाषा: हिंदी

विधा: कविता

प्रकाशक: वाणी प्रकाशन

पृष्ठ संख्या: 127

मूल्य: 225 रुपए


साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.