हर दुख बीतता है
जैसे बीत जाती है कोई कठिन ऋतु
जैसे एक दिन उत्तर जाता है ज्वर
फिर सामान्य करते हुए देह को
धीरे-धीरे चली जाती है
देह में भर आई खरखराहट
कहीं उभरती है
किसी अदेखे छोर से एक मुस्कुराहट
मद्धिम पड़ जाता है दर्द का नगाड़ा
गुनगुना उठता है मन का हारमोनियम
उस अलस भोर में
अब तक न गाया गया कोई राग
खिड़की से धीरे-धीरे आती है दबे पांव
किसी नवजात के तलुओं सी
मुलायम, पवित्र और उम्मीदों से भरी फूलों की खुशबू
मैं देख पाता हूं इस जीवन में पहली बार
काया कमनीय हवा की
जैसे प्रिया हो खड़ी मेरे कांधे पर रखे हुए हाथ
जैसे अमृत सा मिला है उसका साथ...
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आज की किताबः काल मृग की पीठ पर
लेखक: जितेन्द्र श्रीवास्तव
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 127
मूल्य: 225 रुपए
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.