मैं कई महिलाओं को जानती हूं जो पूरी तरह से पितृसत्तात्मक हैं, जो पूरी तरह से महिला विरोधी हैं और जो अन्य महिलाओं के साथ बुरा करती हैं. मैं ऐसे पुरुषों को भी जानती हूं जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए जीवन भर काम किया है. नारीवाद जैविक लैंगिक नहीं...नारीवाद एक विचारधारा है. 'औरतनामा' में आज हम बात कर रहे हैं नारीवादी कार्यकर्ता कमला भसीन की, जो अक्सर खुद को आवारा या भारत-पाक विभाजन के समय पैदा होने के चलते खुद को आधी रात की संतान कहा करती थीं. वे मानती थीं कि समाज में परिवर्तन सिर्फ नारीवादी महिला ही नहीं, पुरुषों की जरूरत भी है. पितृसत्ता जिस्मानी नहीं दिमागी सोच है, जो किसी को भी किसी का दुश्मन बना सकती है. कमला भसीन ने 70 के दशक से लेकर अपनी मृत्यु तक लगातार नारीवादी आंदोलनों का नेतृत्व किया. पितृसत्तात्मक समाज से कई सवाल पूछे. उसकी सत्ता को कटघरे में रखा.
वह कमला भसीन ही थीं जिन्होंने कहा था 'महिला की इज्जत योनि में नहीं है' जब रेप होता है तो लोग कहते हैं कि स्त्री की इज्जत चली गई! स्त्री की इज्जत उसकी योनि में नहीं है, सबका ये जानना ज़रूरी है. यह पितृसत्तात्मक विचार है कि बलात्कार स्त्री के सम्मान को अपवित्र करेगा. महिला का सम्मान महिला की योनि से क्यों जुड़ा हुआ है? पुरुषों के लिए तो ऐसा नहीं किया गया! सम्मान बलात्कारी खोता है, पीड़िता नहीं. कमला भसीन ने पितृसत्ता और जेंडर पर काफी विस्तार से लिखा है. उनकी प्रकाशित रचनाओं का तीस से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है.
कमला भसीन की प्रमुख रचनाओं में Laughing matters!!, Exploring masculinity, Borders & Boundaries: Women in India's Partition, 'What is Patriarchy?' और Feminism and Its Relevance in South Asia. अपनी इन किताबों के सहलेखन में उन्होंने अन्य महिलाओं को भी शामिल किया हैं. उन्होंने लंबे समय तक संयुक्त राष्ट्र संघ में महिलाओं के अधिकारों के लिए कार्य किया. 2002 में नारीवादी सिद्धांतों को जमीनी हकीकत देने के लिए उन्होंने दक्षिण एशियाई नेटवर्क संगत की स्थापना की. यह संस्था ग्रामीण और आदिवासी समुदाय की वंचित महिलाओं के लिए काम करती है. दुनिया भर की महिलाओं के साथ हो रही हिंसा के खिलाफ चलाया गया कैंपेन 'वन बिलियन राइजिंग' कमला जी की पहचान बन गया. 'क्योंकि मैं लड़की हूं, मुझे पढ़ना है', 'हंसना तो संघर्षों में भी जरूरी है' जैसी अनगिनत कविताएं- नारे लिख चुकी कमला भसीन समाज में बदलाव के प्रति आशावादी थीं. वे मानती थीं परिवर्तन की राह आसान नहीं लेकिन नामुमकिन भी नहीं है. जब लड़कियों को घर में बराबरी का दर्जा मिलेगा तो समाज में बराबरी के दर्जे की राह आसान हो जाएगी. इसके लिए उनकी संस्था ने 'बेटी दिल में बेटी विल में' नाम से कैंपेन भी शुरू किया था. उनकी संस्था की एक और कोशिश शेयरिंग ऑफ अनपेड वर्क थी. पच्चीस सितंबर 2021 में उनकी मृत्यु के समय शबाना आज़मी ने लिखा था 'मुझे हमेशा से लगता था कमला भसीन अजेय थीं, और वह अंत तक अजेय रहीं. उनकी कथनी और करनी में किसी तरह का विरोधाभास नहीं था.'