जिन कहानियों ने हमारे दिलों में जगह बनाई | 'हिन्दी कहानी वाया आलोचना' | Neeraj Khare | Sahitya Tak | Tak Live Video

जिन कहानियों ने हमारे दिलों में जगह बनाई | 'हिन्दी कहानी वाया आलोचना' | Neeraj Khare | Sahitya Tak

इन कहानियों का हमारे दिलों में विशेष स्थान है. ये एक लंबे कालखंड में रची गई, पर इन्होंने समय की सीमा को लांघ दिया. इनके कथानक और शिल्प आज भी प्रभावी हैं. नीरज खरे द्वारा संपादित ‘हिन्दी कहानी वाया आलोचना’ ऐसी पुस्तक है, जिसमें बीसवीं सदी की सत्तर प्रतिनिधि कहानियों पर अलग-अलग आलोचनाएं एक साथ हैं. इस पुस्तक में कहानियों के उल्लेख और कहानीकारों पर सघन विवेचना तो मिल ही जाती हैं, पर कहानियों के एकल पाठ यानी उन पर एकाग्र आलोचनाएं कम ही हैं. संपादक ने लंबी भूमिका में विधागत प्रवाह पर अत्यंत सतर्क नज़र रखी है, जिससे ‘बीसवीं सदी की हिन्दी कहानी परम्परा’ का सुव्यवस्थित संज्ञान, प्रवृत्तियों की पहचान या संकलित आलोचनाओं तक जाने का कोई रास्ता या सूत्र भी हासिल हो जाता है. पिछले दो दशकों से कथालोचना में नीरज खरे की सक्रिय उपस्थिति रही है. इस पूरे उपक्रम में उनकी आलोचकीय समझदारी और संपादकीय अभिरुचि साफ़ देखी जा सकती है. हालांकि इस पुस्तक में बहुत सारे पुरातन लोग छूट गए हैं, जैसे डॉ रामविलास शर्मा, पं रामचंद्र शुक्ल. जाहिर है कि यह आलोचना पुस्तक केवल कहानियों की बात करती है. जैसे किसी खास कहानी पर किसी खास अध्यापक, प्राध्यापक, आलोचक, समीक्षक ने अपनी टिप्पणी में क्या कहा है? यह सब जानना है तो इस पुस्तक को खरीद सकते हैं.

साहित्य तक में बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में आज वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने नीरज खरे की पुस्तक 'हिन्दी कहानी वाया आलोचना' की चर्चा की है. आप अगर साहित्य के विद्यार्थी, शोधार्थी, अध्येता अथवा साहित्य में रुचि रखते हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए बहुउपयोगी ही नहीं, अत्यन्त सार्थक भी है. राजकमल प्रकाशन के सहयोगी उपक्रम लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक में 487 पृष्ठ हैं और इसके पेपरबैक संस्करण का मूल्य है 399 रुपए.