मुस्लिम परिवार में जन्म लेकर ब्राह्मण परिवार में गठबंधन करने वाली, जीवन के हर रंग और विविधता को खुलकर जीने, रचने वाली और तो और रचनात्मकता के शिखर तक पहुंचने वाली नासिरा शर्मा का जन्म 1948 में इलाहाबाद शहर में हुआ. उन्होंने फारसी भाषा और साहित्य में एम. ए. किया. हिन्दी उर्दू, अंग्रेज़ी, फारसी एवं पश्तो भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है. वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला व संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं. इरा़क, अ़फ़गानिस्तान, सीरिया, पाकिस्तान व भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ उन्होंने साक्षात्कार किए, जो बहुचर्चित हुए. इनके साक्षात्कार से समाज के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है. युद्धबन्दियों पर जर्मन और फ्रेंच दूरदर्शन के लिए बनी फिल्म में भी नासिरा शर्मा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. नासिरा शर्मा ने बहुत ही कम उम्र में लिखना शुरू कर दिया था. 'सात नदियां एक समन्दर','शाल्मली', ठीकरे की मंगनी, ज़िंदा मुहावरे, अक्षय वट, कुइयाँजान, ज़ीरो रोड, पारिजात, अजनबी जज़ीरा, कागज़ की नाव और अल्फ़ा- बीटा- गामा आदि नासिरा शर्मा की प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं. नासिरा शर्मा को वर्ष 2016 का साहित्य अकादमी पुरस्कार उनके उपन्यास पारिजात के लिए प्रदान किया गया था और वर्ष 2019 का व्यास सम्मान उनके उपन्यास कागज की नाव पर उन्हें प्रदान किया गया. इतना ही नहीं नासिरा ने कई पुस्तकों के हिंदी अनुवाद में भी अपनी अहम भूमिका दर्ज की. नासिरा शर्मा को हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संस्कृतियों का गहरा अनुभव है. वे स्त्रियों की मनोदशा और संवेदनाओं को गहराई से महसूस कर लिखती हैं. उनकी कहानियां स्त्री मन की कंदराओं में छिपी अनकही भावनाओं को व्यक्त करती हैं.
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ये वे लेखिकाएं हैं, जिन्होंने न केवल लेखन जगत को प्रभावित किया, बल्कि अपने विचारों से समूची नारी जाति को एक दिशा दी. आज का युवा वर्ग कलम की इन वीरांगनाओं को जान सके और लड़कियां उनकी जीवनी, आजाद ख्याली के बारे में जान सकें, इसके लिए चर्चित अनुवादक, लेखिका, पत्रकार और समाजसेवी श्रुति अग्रवाल ने 'साहित्य तक' पर 'औरतनामा' के तहत यह साप्ताहिक कड़ी शुरू की है. आज इस कड़ी में श्रुति 'नासिरा शर्मा' के जीवन और लेखन की कहानी बता रही हैं. 'औरतनामा' देश और दुनिया की उन लेखिकाओं को समर्पित है, जिन्होंने अपनी लेखनी से न केवल इतिहास रचा बल्कि अपने जीवन से भी समाज और समय को दिशा दी.