‘रहमानखेड़ा का बाघ’ संग्रह की कहानियां और संस्मरण उन वन्य जीवों के हैं जो किसी-न-किसी कारण अपने परिवेश, अपने जंगलों से बिछड़ गए हैं और जंगल से दूर शहरों, गांवों और कस्बों में भटक गए हैं. यह वन्य जीव सिर्फ अपना खोया हुआ घर ढूंढ़ रहे हैं, जहां उन्हें खाने के लिए भोजन, पीने के लिए पानी और सिर छुपाने को जगह मिल जाए. भटकते हुए वन्य जीव, भटक जाने पर अजीब-सा व्यवहार करते हैं हमने इनके बारे में अब तक जो भी सुना, पढ़ा और देखा होता है वो सब बेकार हो जाता है. हर भटका हुआ वन्य जीव एक नई किताब होता है, जिसका अंत आपको किताब के आखिरी पन्ने पर मालूम होता है. ये कहानियां अनुभवों का एक प्रवाह हैं जिसमें कई वर्षों की धारा को एक दिशा देने का प्रयास किया गया है.
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आज की किताबः 'रहमानखेड़ा का बाघ'
लेखक: उत्कर्ष शुक्ला
भाषा: हिंदी
विधा: कहानी
प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 240
मूल्य: 695
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.