बहुत कुछ और भी है इस जहां में
ये दुनिया महज़ ग़म ही ग़म नहीं है.... मजाज़ लखनवी के इस शेर से शुरू हो रही प्रो सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी की पुस्तक 'बाहर कुछ, भीतर कुछ' अनूठी वृतांत समेटे है. हिन्दी खेल-पत्रकारिता के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर रहे सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने लगभग 40 बरस स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य का अध्यापन किया. वे इंदौर संभागीय क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव एवं इसपोरा के अध्यक्ष भी थे. मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ एवं फ़िरोजाबाद क्रिकेट टूर्नामेंट द्वारा लाइफ़ टाइम अचीवमेंट सम्मान एवं राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति भोपाल द्वारा हिंदी भवन में विशिष्ट हिंदी-सेवी सम्मान से नवाज़े गए. क्रिकेट पर उनकी दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं. पर यह पुस्तक 'बाहर कुछ, भीतर कुछ' ललित निबंध का सग्रह है. इस पुस्तक में कुल 48 निबंध हैं, जो खुद को अलग-अलग विषयों में समेटे हुए हैं. यह पुस्तक अलग-अलग प्रवृत्ति के लोगों के अनुभवों को संकलित कर पाठकों के सामने एक सीख के साथ रखती है. जैसे लोग 'अपने दुख से दुखी नहीं होते बल्कि दूसरों के सुख से दुखी होते हैं'. समाज के व्यवहार, आज के समय, शिक्षा और मानव व्यवहार पर आधारित निबंधों का यह संकलन अपने आप में बेहद अनूठा है. आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने प्रोफेसर सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी, जिनका खेल-पत्रकारिता के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान है, और जिनकी लेखनी गंभीरता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जानी गई, जिन्होंने कई बड़े खेलीय घटनाओं की रिपोर्टिंग की है और खेल-पत्रकारिता के क्षेत्र लंबा और सम्मानित करियर बिताया, की पुस्तक 'बाहर कुछ' भीतर कुछ' की चर्चा की है. दुर्योग से इसी साल फरवरी में प्रोफेसर चतुर्वेदी का निधन हो गया. एक लेखक हमेशा अपनी कृतियों में जिंदा रहता है और समाज के चरित्र और व्यवहार जैसे अद्वितीय विषय पर लिखी गई यह पुस्तक निश्चय ही अपने पाठकों का ज्ञानवर्धन करेगी. अद्विक प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक में कुल 148 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य 250 रुपए है.