मैंने संभाल रखी है
अब भी बच्चों - सी वह हंसीं
ताकि प्रबुद्ध जनों की सभा में
लिए जाने वाले बचकाने निर्णयों पर
हंस सकूं मैं खिलखिला के
मैं आऊंगी तुम्हारे पास
जब तुम्हारी आंखों में बची हो तुम्हारी आंख
ताकि तुम्हारी नज़रों की नापपट्टी से परे
मैं जैसी हूं ठीक वैसी की वैसी ही बची रहूं
तुम्हारे सामने
मेरे पैरों से बड़े
तुम्हारे जूते तो नहीं मांगे है मैंने
कि तुम्हारी हां में हां मिलाकर
कर लूं सब कुबूल !
मैं तुम्हारी कर्जदार नहीं
मेरे हिस्से की हंसीं की
हक़दार हूं मैं !
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आज की किताबः ढ़ाई इंच का चाँद
लेखक: पन्ना त्रिवेदी
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: आर. आर. शेठ
पृष्ठ संख्या: 94
मूल्य: 150 रुपये
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए इस पुस्तक की चर्चा.