आदमखोर उठा लेता है
छह साल की बच्ची
लहूलुहान कर देता है उसे
अपना लिंग पोंछता है
और घर पहुंच जाता है
मुंह और हाथ धोता है
खाना खाता है
रहता है बिलकुल शरीफ़ आदमी की तरह
शरीफ़ आदमी को भी लगता है
बिलकुल शरीफ़ आदमी की तरह... कवयित्री और प्रखर स्त्रीवादी आलोचक सविता सिंह द्वारा संपादित 'प्रतिरोध का स्त्री स्वर' में संकलित कविताएं शक्ति की ऐसी सभी संरचनाओं के विरुद्ध प्रतिरोध की कविताएं हैं, जो स्त्रियों को उनके अधिकार से वंचित करती हैं. वह चाहे पितृसत्ता हो, धार्मिक सत्ता, जातिवादी या राजनीतिक. कहा जा सकता है कि ये कविताएं अस्मिता विमर्श की सीमाओं का अतिक्रमण करती हैं या उसकी परिधि को और व्यापक बनाती हैं. इस संग्रह में शुभा, शोभा सिंह, निर्मला गर्ग, कात्यायनी, अजंता देव, प्रज्ञा रावत, सविता सिंह, रजनी तिलक, निवेदिता झा, अनीता भारती, हेमलता महिश्वर, वंदना टेटे, रीता दास राम, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल, सीमा आज़ाद, सुशीला टाकभौरे, कविता कृष्णपल्लवी, जसिंता केरकेट्टा, रुचि भल्ला की कविताएं शामिल हैं.
********
आज की किताबः 'प्रतिरोध का स्त्री-स्वर: समकालीन हिन्दी कविता'
संपादक: सविता सिंह
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: राधाकृष्ण पेपरबैक्स
पृष्ठ संख्या: 288
मूल्य: 350 रुपए
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.