इस बार भी उन्होंने दिखलाया
प्रेम की तरह प्रेम
अपनेपन की तरह अपनापन
विश्वास की तरह विश्वास
इस बार भी पास में आकर बैठ गए थोड़ी देर-
आदमी की तरह आदमी होकर
मैं उन्हें देखता रहा
वे जहां थे वहां से और चले गए दूर
पास रहकर इतनी दूर पहुंच गए कि
मेरी पहुंच के बाहर था उन्हें छू पाना
इस बार भी दिखा नहीं मेरा प्रेम, प्रेम की तरह
अपनापन, अपनेपन की तरह
विश्वास, विश्वास की तरह
जैसा था वैसा ही रहा आंखों में लिये उत्सुकता
इस बार भी मैं दिखा नहीं आदमी की तरह
आदमी ही रहा
इस बार भी उनके हाथों में लिये हाथ...।
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आज की किताबः 'जगन्नाथ का घोड़ा'
लेखक: रवीन्द्र भारती
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: राधाकृष्ण प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 101
मूल्य: 395 रुपए
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.