साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' में 'कविता' की पुस्तकें ये हैं.
* युद्ध के विरुद्ध- विश्व कविता से एक चयन. (चार खंड)
पूछता है कवि
सरहदें किसने बनाईं
किसने सिखाया हिंसक खेल
विजय किसकी, किस पर और क्यों?... चार खंडों में प्रकाशित इस महत्त्वपूर्ण वृहत संग्रह के लिए चयनकर्ता और संपादक कुमार अनुपम, सह-संपादक ओपी झा हैं.
- प्रकाशक: सर्व भाषा ट्रस्ट
* सुनो जोगी और अन्य कविताएँ | संध्या नवोदिता
तुम मेरे भीतर
मेरी आत्मा की तरह हो
जिसे मैंने कभी नहीं देखा... मनुष्य की गरिमा के साथ प्रेम और साहचर्य को जीती नवोदिता की कविताएं प्रकृति के साथ भी एक अटूट साहचर्य की कामना रखती हैं.
- प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन
* वासना एक नदी का नाम है | सविता सिंह
कहना मुश्किल था
मैं पानी में थी या पानी मुझमें... पहले कविता संग्रह 'अपने जैसा जीवन' के प्रकाशन के दो दशकों के बीच जीवन, नींद, रात, स्वप्न, शोक से होती हुई हमारे दौर की यह उल्लेखनीय कवयित्री इस संग्रह की कविताओं में वासना के अर्थ को विस्तार देती हैं.
- प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
* उदासियों की उर्मियाँ | अनु चक्रवर्ती
अगर प्रेम को रंच-मात्र भी
जीवन के किसी कोटर में
संजो कर
रख सकें हम
तो समझो बड़ा काम किया... स्त्री पीड़ा की चुभन, एकाकीपन और परिवेशगत अनुभवों पर आधारित इस संग्रह की कविताएं स्त्री काव्य-परंपरा पर भी प्रहार करती हैं. इन कविताओं में पर्यावरण के लिए चिंता है, तो अकेले रह जाने का दुख भी.
- प्रकाशक: वेरा प्रकाशन
* धर्म वह नाव नहीं | शिरीष कुमार मौर्य
अन्न मांगो उस घर से
जो विपन्न हो..मानव संवेदना को प्रलाप और वैचारिकता के नारे से दूर रहने वाली उल्लेखनीय कृति.
- प्रकाशन: राधाकृष्ण प्रकाशन
* सूरजमुखी के खेतों तक | एकांत श्रीवास्तव
अब इतनी रौशनी है हर तरफ
कि उन अंधेरों की याद आती है...इस संग्रह की कविताएं किसान, गांव और खेतों की कविता है तो मनुष्य के श्रम, संघर्ष और अस्तित्व से जुड़े प्रयासों का पृथक प्रतिसंसार रचती हैं.
- प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
* अयोध्या में कालपुरुष | बोधिसत्व
पीछे की पहाड़ी की ओर
बुद्ध आते थे वहां और खड़े होते थे
उस खिड़की के सामने... इन कविताओं में समय बोध का एक विराट फलक उपस्थित है और साथ ही समकालीन कविता के रूढ़ मुहावरों को तोड़ते हुए कवि सृजन के आदिम विश्वास को कायम रखने में सफल भी है.
- प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
* उमराव जान | प्रभात पाण्डेय
ये क्या किया उमराव जान
तुमने ये क्या किया
सरेआम मेरे शाने पर सिर धर दिया...उमराव जान लोक आख्यान में समाई ऐसी शख्सियत है जिसने इतिहास और समय के साथ साथ सफर किया है पर जिसके पैरों के निशान कहीं नहीं दिखते. स्मृतियों के गर्द-ओ-गुबार में जिसकी नियति धुंधलाती रही उसी के बहाने स्त्री की नियति का लेखा-जोखा करता प्रबंध-काव्य.
- प्रकाशक: सर्व भाषा ट्रस्ट
* 'एक परित्यक्त पुल का सपना' | सौम्य मालवीय
फ़लस्तीन तुम्हारे बच्चे
आसमान में उड़ रहे हैं साये-साये बनकर... इन कविताओं में एक ऐसे कवि की यात्रा है जो गणित, विज्ञान, दर्शन और समाजशास्त्र की गलियों में भटकते हुए बार-बार कविताओं के दयार पर लौटता है.
- प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन
* कमाल की औरतें | शैलजा पाठक
बुद्धि से ख़त्म औरत
देह से चाही गई
आँख से अन्धी हो जाती
कोख से बाँझ... इस संग्रह में सब तरह की औरतें मौजूद हैं- पीड़ित, अकेली, विद्रोही, दाम्पत्य को छिन्न-भिन्न करने को आतुर भी. इस संग्रह की कविताओं को पढ़ना स्त्री दुख के किसी टापू पर अचानक पहुंच जाने जैसा है.
- प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन