पृथ्वी पर लड़कियों के ख़िलाफ़ एक यौन-युद्ध चल रहा है; उन स्त्रियों के ख़िलाफ़ जिन्हें इस मानव- प्रजाति को जीवित रखने का श्रेय जाता है; उन महिलाओं के ख़िलाफ़ जिन्होंने सिद्ध कर दिया है कि वे हर उस काम को और ज़्यादा अच्छे ढंग से कर सकती है, जिसे पुरुष अपना काम कहता आया है. यह कहना है ख्यातनाम लेखिका तसलीमा नसरीन का. उनकी एक किताब आयी है हिंदी में, नाम है ''स्त्री : समाज और धर्म'. इस पुस्तक में तसलीमा नसरीन के वे आलेख संकलित हैं जो उन्होंने समय-समय पर उन घटनाओं, ख़बरों और अपने अनुभवों की रोशनी में लिखे हैं, जिनके केन्द्र में स्त्री और उसके दुख हैं. मुख्यतः बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान की पृष्ठभूमि में की गई ये टिप्पणियां बताती हैं कि सभ्यता चाहे जितना आगे बढ़ी हो, स्त्री को लेकर पुरुष की सोच नाममात्र को ही बदली है. धर्म और समाज के अनेक नियमों, परम्पराओं, आग्रहों और मान्यताओं में उनकी यह सोच झलकती है. पुरुष हिंदू हो या मुस्लिम या फिर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प, स्त्री सभी के लिए एक वस्तु है, उससे अधिक नहीं. आखिर समाज की इस मानसिकता की वजह क्या है?
तसलीमा नसरीन हमेशा ही असाधारण साहस और साफ़गोई के साथ तीखी भाषा में पुरुष सत्ता को ललकारती रही हैं; इसके लिए वे एकदम सहज और सजीव गद्य की रचना करती हैं, जो हर बार उतना ही प्रभावशाली सिद्ध होता है. पुस्तक का अनुवाद बहुत सरस है.
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आज की किताबः स्त्री: समाज और धर्म
लेखक: तसलीमा नसरीन
अनुवाद: उत्पल बैनर्जी
भाषा: हिंदी
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
विधा: स्त्री विमर्श
पृष्ठ संख्या: 256
मूल्य: 350 रुपये
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए इस पुस्तक की चर्चा.