नयन को घेर लेते घन,
स्वयं में रह न पाता मन
लहर से मूक अधरों पर
व्यथा बनती मधुर सिहरन
न दुख मिलता न सुख मिलता
न जाने प्राण क्या पाते!
कभी जब याद आ जाते
कभी जब याद आ जाते!! यह कविता की पंक्तियां हिंदी आलोचना के शलाका पुरुष नामवर सिंह की है. आलोचक, लेखक और विद्वान डॉ नामवर सिंह के बारे में जितना भी कहा जाए कम है. कवि लीलाधर मंडलोई ने कभी कहा था कि नामवर सिंह आधुनिकता में पारंपरिक हैं और पारंपरिकता में आधुनिक. हिंदी साहित्य जगत में उनका स्थान बहुत ऊंचा है. उनकी बेटी समीक्षा ठाकुर द्वारा संपादित 'तुम्हारा नानूः नामवर सिंह' पुस्तक हाल ही में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है जिसमें नामवर सिंह और समीक्षा द्वारा एक दूसरे को लिखे गए पत्रों को संकलित किया गया है. ये पत्र 1986 से 2005 के बीच लिखे गए थे और इनका उद्देश्य यात्राओं में अपने देखे स्थलों और अन्य अनुभवों से अपनी बेटी को परिचित कराना था. इन पत्रों को संकलित करते हुए समीक्षा उनकी रोज़-रोज़ की यात्राओं और व्यस्तताओं का हवाला देते हुए बताती हैं कि वापस घर आने पर वे रस ले-लेकर वहां के बारे में बताते और चाहते कि बेटी भी उन जगहों को देखे. इसलिए बाद में उन्होंने अपनी देखी-जानी चीजों को पत्रों में लिखना शुरू कर दिया. पत्रों की अपनी एक ऊष्मा होती है, जो अब मोबाइल और मेल के ज़माने में दुर्लभ है. इन पत्रों को पढ़ते हुए हम वह ऊष्मा भी महसूस करते हैं, और नामवर सिंह की दृष्टि की बारीकी से भी परिचित होते हैं. इस पुस्तक में समीक्षा ठाकुर लिखित दो आलेख भी शामिल हैं. इनमें उन्होंने अपने पिता नामवर, हिन्दी के महान आलोचक नामवर, सबके चहेते नामवर, और वक्ता नामवर के साथ नामवर सिहं के जीवन के कई पहलुओं पर रौशनी डाली है. निश्चित तौर पर यह एक पठनीय और संग्रहणीय पुस्तक है. आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने नामवर सिंह की बेटी समीक्षा ठाकुर द्वारा संपादित पुस्तक 'तुम्हारा नानूः नामवर सिंह' पर चर्चा की है. यह पुस्तक राजकमल पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित है. 224 पृष्ठ समेटे इस पुस्तक का मूल्य 299 रुपए है.