अरुणाचल है हाथ हमारा सिर लद्दाख को कहते हैं
कंधे पर हिम की चादर कश्मीर शिखा को कहते हैं
सीने पर बह रही है गंगा झुका चरण में सागर है
रेत समेटे भुजा दाहिनी इतिहास का उज्ज्वल काजल है... कवि मुकेश तिवारी की यह देशभक्ति कविता सुनकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे. सुनिए सिर्फ साहित्य तक पर.