क्या है सनातन?
कौन हैं हिंदू?
आदि शंकराचार्य की भूमिका क्या थी?
क्या आप जानते हैं निर्गुण-सगुण का अंतर?
हिंदू धर्म-ग्रंथों को पढ़ना भगवाधारी होना नहीं है... ऐसे अनगिनत प्रश्नों और उनके उत्तरों के साथ 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में Eka Westland से प्रकाशित अपनी पुस्तक 'महान हिंदू सभ्यता: उपलब्धियाँ, उपेक्षा, पूर्वाग्रह और आगे का रास्ता' पर चर्चा के लिए उपस्थित थे लेखक, चिंतक, विचारक पवन के वर्मा. उन्होंने कहा कि ये तथ्य है कि हिंदू सभ्यता हजारों साल पहले अस्तित्व में थी और आज भी अस्तित्वमान है. यह किसी शंका का विषय नहीं है. महान पुरातन अवशेषों, प्रचुर और अप्रत्याशित बारीकियों, साहसिक सोच और आध्यात्मिकता के साथ-साथ धर्मनिरपेक्ष उपलब्धियों में उसकी निशानियां मौजूद हैं. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि वह बेदाग है, और वस्तुनिष्ठता का तकाजा है कि हम उन दागों का भी हिसाब रखें. इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह एक संकीर्ण और बंद कोठरी में विकसित हुई, जो बाहरी असर से अछूती रही. दरअसल इसका ठीक उलट रहा और फिर भी, इस मेलजोल से बतौर एक प्रामाणिक सभ्यता उसकी बुनियादी पहचान न कम हो सकी, न मिट सकी. कई अन्य महान सभ्यताओं से इतर, हिंदू सभ्यता कोई ऐतिहासिक अवशेष बनकर जमींदोज नहीं हुई, बल्कि वर्तमान तक बनी हुई है.
'इस सभ्यता के बारे में और अधिक जानना जरूरी है, विशेषकर हिंदुओं को. इस सभ्यता को एक दुर्भाग्यपूर्ण विरोधाभास का सामना करना पड़ा है. यह सभ्यता एक तरफ तो अपने लचीलेपन, निरंतरता और हिंदू जीवन के हर पक्ष पर अपने असर के लिए जानी जाती है; तो दूसरी तरफ खुद हिंदू अपनी ही सभ्यता के बारे में और जानने के लिए कम उत्सुक दिखते हैं. यह उदासीनता चिंता का विषय है, खासतौर पर इसलिए कि अगर हिंदू खुद अपनी सभ्यता की विरासत के बारे में नहीं जानेंगे, तो ज्ञान के आधार पर उनका हिंदू होना रस्मी रह जाएगा.'
पवन के. वर्मा लेखक और राजनयिक हैं और कुछ समय पूर्व तक राज्य सभा के सदस्य भी रह चुके हैं. कैबिनेट मंत्री के पद के साथ आप बिहार के मुख्यमंत्री के सलाहकार भी रह चुके हैं. विभिन्न देशों में भारत के राजदूत के तौर पर कार्यरत रहे वर्मा लंदन में नेहरू सेंटर के अध्यक्ष, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता और भारत के राष्ट्रपति के प्रेस सचिव भी रहे. करीब दर्जनभर बेहतरीन किताबों के लेखक पवन के. वर्मा को कूटनीति, साहित्य, संस्कृति और सौंदर्यशास्त्र के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2005 में यूनीवर्सिटी ऑफ इंडियानापॉलिस की ओर से मानद डॉक्टरेट डिग्री प्रदान की गई. आपको 2012 में भूटान के सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार 'द्रक थक्सेय' से भी सम्मानित किया गया.
लेखक, चिंतक, विचारक पवन के वर्मा की Eka Westland से प्रकाशित पुस्तक 'महान हिंदू सभ्यता: उपलब्धियां, उपेक्षा, पूर्वाग्रह और आगे का रास्ता' में 348 पृष्ठ हैं, और इसके पेपरबैक्स संस्करण का मूल्य है 499 रुपये. यह पुस्तक The Great Hindu Civilisation का हिंदी अनुवाद है. सुनिए इस पुस्तक के बहाने पवन के वर्मा संग वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय की यह बातचीत.