तुमने क्या खोया जोगी?
हमने अपने पराये खोये ।
बिन कांधे के घर बैठे ही मुसि-मुसि आंसू ढोये,
तुमने क्या खोया जोगी ?
सगे-संबंधी, न्यारे,
प्यारे जिनको गोद खिलाया ।
जिनको सेहरा बांध के हमने
विदा किया था हंसी खुशी,
कंधों पर जब विदा किया
तो कैसे दिल पर चोट पड़ी ?
भेष बनाओ ऋषि मुनियों का
राक्षस जैसा राज करो।
आत्मा रोज़ रूप बदल रही तुम
रोज़ दस दस सूट बदलना
तुमने क्या खोया जोगी ?
हमने अपने पराये खोये
बिन कांधे के घर में बैठे
मुसि-मुसि के बस आंसू ढोये... यह कविता हरेन्द्र सिंह असवाल के संग्रह 'खेड़ाखाल' से ली गयी है.
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आज की किताबः खेड़ाखाल
लेखक: हरेन्द्र सिंह असवाल
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: स्वराज प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 138
मूल्य: 450 रुपये
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए इस पुस्तक की चर्चा.