जब देना चाहो किसी स्त्री को प्रेम
एक पिता बन कर जाना,
चूमना उसके माथे को, बालों को सहलाना,
अंक में भर विश्वास दिलाना
कि हर विपदा को उस तक
तुमसे होकर गुज़रना होगा।
अंगुलियों के पोरों से पोंछना आंसू,
और कहना कि
अपनी सभी अपूर्णताओं के साथ
वह तुम्हारे लिए सम्पूर्ण है।
जब पाना हो किसी स्त्री का प्रेम
एक शिशु बन जाना,
वह स्नेहिल दृष्टि से अपलक निहारेगी,
चूमेगी तुम्हारी आंखों को बारी-बारी।
सीने से लगा, भर लेगी अपने भीतर
तुम्हारे सब संताप,
तुम्हारी रक्षा करेंगी
कवच बनकर उसकी दुआएं।
पुरुष दर्प से भरी देह लेकर
प्रेम की तलाश कदापि न करना,
क्योंकि तब स्त्री भी
एक देह भर बन जाएगी।
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आज की किताबः 'कोई फ्लेमिंगों कभी नीला नहीं होता'
लेखक: डॉ निधि अग्रवाल
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 231
मूल्य: 250
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.