- प्रिंट मीडिया ने संप्रदाय शब्द को संकुचित कर दिया है
- सनातन धर्म में हजारों संप्रदाय हैं
- प्रेम के माध्यम से आप भगवान तक भी जा सकते हैं और निर्धन तक भी
- आज हमारे तीर्थ क्षेत्र पर्यटन स्थल बनते जा रहे हैं
- राम मंदिर जैसे आंदोलनों की आज हमें जरूरत है
- धर्म जोड़ता है और राजनीति तोड़ती है
- तुलसीदास बड़े या कबीरदास?
उपरोक्त कथनों पर बारीकी से अपनी राय रखने और चर्चा करने के लिए आज साहित्य तक के प्रतिष्ठित कार्यक्रम 'बातें- मुलाकातें' में अतिथि के रूप में हमारे साथ वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ उदय प्रताप सिंह मौजूद हैं. उदय प्रताप सिंह हिंदी साहित्य का एक बड़ा नाम हैं, जो तीन दशकों से अधिक समय से साहित्य सृजन कर रहे हैं. खास बात यह कि संत साहित्य में डाॅ सिंह का काम बहुत विस्तृत है. निबंधों में जहां उनकी गति ललितोन्मुखी है वहीं आलोचना में उनकी लेखनी अपनी पारंपरिक चेतना से समृद्ध दिखती है. संत साहित्य के साथ उन्होंने आचार्य अभिनवगुप्त, काशिका साहित्य व संस्कृति, भोजपुरी भाषा, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, विद्यानिवास मिश्र, जानकीवल्लभ शास्त्री, मुक्तिबोध, माखनलाल चतुर्वेदी, नरेश मेहता, राममूर्ति त्रिपाठी पर भी गंभीर लेखन किया है. 'साधुभाव की बैखरी संदर्भ उदय प्रताप सिंह' पुस्तक उसी का एक जीवंत रूप है. इस कार्यक्रम में चर्चा के दौरान डाॅ सिंह ने कबीर, तुलसी, धर्म, भाषा, दर्शन पर भी संदर्भ सहित अपना पक्ष रखा. तो 'बातें- मुलाकातें' कार्यक्रम में डाॅ उदय प्रताप सिंह के साथ वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय की यह चर्चा सुनें सिर्फ़ साहित्य तक पर.