Pandita Ramabai ने क्यों किया था Swami Vivekananda के ख़िलाफ़ प्रदर्शन | औरतनामा | Shruti Agarwal | Tak Live Video

Pandita Ramabai ने क्यों किया था Swami Vivekananda के ख़िलाफ़ प्रदर्शन | औरतनामा | Shruti Agarwal

उन्हें इतिहास में विवेकानंद की आलोचना करने वाली पहली भारतीय नारीवादी महिला के रूप में जाना जाता है. उनकी बुद्धिमत्ता देख ब्राह्मणों ने उन्हें सरस्वती की उपाधि दी थी, बाद में उनकी मुखरता देख वे सभी इनके ख़िलाफ़ हो गए. उनके नाम पर शुक्र ग्रह के एक क्रेटर का नाम रखा गया है. औरतनामा में आज हम बात कर रहे हैं पंडिता रमाबाई की. जिन्हें भारतीय इतिहास में नारीवादी ही नहीं सुधारवादी महिला भी माना जाता है. उन्होंने महिलाओं के लिए महिला आर्य समाज की शुरुआत की थी. पंडिता रमाबाई से जुड़ा एक बेहद दिलचस्प क़िस्सा शिकागो धर्मसभा से जुड़ा हुआ है. जब स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म की महानता पर लेक्चर दिया तब रमाबाई की अगुवाई में कई महिलाओं ने उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया और हिंदू धर्म में महिलाओं की स्तिथि पर सवाल उठाए. उन्होंने पूछा कि स्वामी जी के भाषणों में महिलाओं की अनदेखी क्यों की गई. इस भाषण के विरोध में रमाबाई ने लिखा 'मैं अपनी पश्चिमी बहनों से गुज़ारिश करती हूं कि वे बाहरी ख़ूबसूरती से संतुष्ट ना हों. महान दर्शन की बाहरी खूबसूरती, पढ़े-लिखे पुरुषों के बौद्धिक विमर्श और भव्य प्राचीन प्रतीकों के नीचे काली गहरी कोठरिया हैं. इनमें तमाम महिलाओं और नीची जातियों का शोषण चलता रहता है'. अमेरिका प्रवास के समय ही पंडिता रमाबाई ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था. इसी समय उन्होंने अपनी सबसे प्रसिद्ध किताब 'द हाई कास्ट हिंदू विमेन’ लिखी, जिसमें बाल विवाह, सती प्रथा, जाति और ऐसे ही तमाम मुद्दों को उठाया गया था. भारत वापसी के बाद रमा बाई ने शारदा सदन की मुखिया के तौर पर महाराष्ट्र में काफ़ी काम किया. कर्नाटक के गुलबर्गा में स्कूल खोला. आजीवन विधवाओं के उत्थान के लिए काम करती रहीं. यूरोपियन चर्च उनकी याद में 5 अप्रैल को फ़ीस्ट डे के तौर पर मनाते हैं. भारत सरकार ने भी रमाबाई के नाम पर डाक टिकट जारी किया है. उनका बनाया पंडिता रमाबाई मुक्ति मिशन आज भी सक्रिय है.