तलवारों से दूर रहा
दरबारों से दूर रहा
अपना ज़र्फ़ बचाने को
अखबारों से दूर रहा
क़िस्से में थी मौत लिखी
किरदारों से दूर रहा
लड़ते समय ग़द्दारों से
मैं यारों से दूर रहा
मुझसे सियासत दूर रही
मैं नारों से दूर रहा
मुझे बसाना था इक घर
बंजारों से दूर रहा
ढलती धूप का वादा था
दीवारों से दूर रहा
सिर्फ़ अना के कहने पर
बाज़ारों से दूर रहा...यह ग़ज़ल सुरेन्द्र चतुर्वेदी के ग़ज़ल- संग्रह 'उदासी का कोई चेहरा नहीं था' से ली गई है, जिसका संपादन ओम निश्चल ने किया. इस संग्रह को सर्वभाषा ट्रस्ट ने 'सर्वभाषा ग़ज़ल सीरीज़' के तहत प्रकाशित किया है. कुल 112 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 199 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा ग़ज़लें सिर्फ़ साहित्य तक पर.