स्त्री! सौंदर्य ने जिसे छला | महर्षि च्यवन की अर्धांगिनी पर Siniwali का Novel हेति- सुकन्या: अकथ कथा | Tak Live Video

स्त्री! सौंदर्य ने जिसे छला | महर्षि च्यवन की अर्धांगिनी पर Siniwali का Novel हेति- सुकन्या: अकथ कथा

कुछ कथाएं असाधारण होती हैं. समय भी उसकी लोकप्रियता को बाधित नहीं कर पाता. ऐसे ही एक पौराणिक कथा है वृद्ध ऋषि च्यवन और उनकी सर्वांग सुंदरी युवा पत्नी सुकन्या की. कहते हैं अपनी तपस्या से ऋषि च्यवन ने इतनी शक्ति अर्जित कर ली थी कि वे इन्द्र के वज्र को भी पीछे धकेल सकते थे. वे भृगु मुनि के पुत्र और प्रजापिता ब्रह्मा के पौत्र थे. कहते हैं एक बार ऋषि च्यवन तप करने बैठे तो हजारों वर्ष बीत गये. उनके शरीर पर दीमक-मिट्टी चढ़ गई और लता-पत्तों ने उन्हें ढंक लिया. उन्हीं दिनों उस राज्य के राजा शर्याति अपनी चार हजार रानियों और एकमात्र रूपवती पुत्री सुकन्या के साथ वन में भ्रमण के लिए आये.

सुकन्या अपनी सहेलियों के साथ घूमते हुये दीमक-मिट्टी एवं लता-पत्तों से ढंके दीमक-मिट्टी के टीले के पास पहुंची, और कौतूहलवश दो गोल-गोल छिद्रों में कांटे गड़ा दिए. वे ऋषि च्यवन की आंखें थीं. कांटों के गड़ते ही उन छिद्रों से रुधिर बहने लगा. सुकन्या भयभीत हो चुपचाप वहां से चली गई. आंखों में कांटे गड़ने से ऋषि अन्धे हो गये. उन्हें इतना क्रोध आया कि उन्होंने तत्काल शर्याति की सेना का मल-मूत्र रुक जाने का शाप दे दिया. राजा शर्याति के पूछने पर सुकन्या ने सारी बातें अपने पिता को बता दी. राजा शर्याति ने च्यवन ऋषि से क्षमायाचना की. जिस पर च्यवन ऋषि ने दंड स्वरूप सुकन्या का हाथ मांग लिया. उनका विवाह च्यवन ऋषि से ऐसे हुआ.

इसके बाद की कथा सुकन्या के पतिव्रता होने की गाथा है. अन्धे च्यवन ऋषि की सेवा करते हुए सुकन्या को अनेक वर्ष व्यतीत हो गये. एक दिन च्यवन ऋषि के आश्रम में दो अश्‍वनीकुमार आ पहुंचे. सुकन्या से उन्होंने उनकी कथा जानी. क्या पता उनके सौंदर्य से प्रभावित हो या उनकी पीड़ा पर द्रवित हो उन्होंने च्यवन ऋषि के आंखों में पुनः दीप्ति प्रदान कर उन्हें यौवन भी प्रदान कर दिया. पर उनका रूप-रंग, आकृति आदि बिल्कुल अश्‍वनीकुमारों जैसी हो गई. उन्होंने सुकन्या से शर्त रखी कि तुम हममें से अपने पति को पहचान कर उसे अपने आश्रम ले जाओ. सुकन्या ने अपनी तेज बुद्धि से अपने पति को पहचान कर उनका हाथ पकड़ लिया...

इसी पौराणिक कथा को आधार बनाकर आज के दौर की प्रखर लेखिका सिनीवाली ने एक उपन्यास लिखा 'हेति- सुकन्या: अकथ कथा'. सिनीवाली का यह पहला उपन्यास ही हिंदी जगत में उन्हें स्थापित करने के लिए पर्याप्त है. हालांकि इससे पूर्व अपने कहानी संग्रहों 'हंस अकेला रोया' और 'गुलाबी नदी' से भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था. वह कई पुस्तकों का अनुवाद भी कर चुकी हैं. इस उपन्यास की भाषा इसकी बड़ी ताकत है.

अद्भुत कथा शैली में लिखा गया उपन्यास 'हेति- सुकन्या: अकथ कथा' राजकुमारी सुकन्या के अप्रतिम सौंदर्य, उनकी अल्हड़ता, स्वप्न, प्रेम, प्रेम-भंग, शापित विवाह, त्याग के साथ-साथ एक स्त्री की पीड़ा, एक ऋषि के अहंकार, स्त्री तन के प्रति उनके आकर्षण और एक राजा की बाध्यता को भी उकेरता है. यह उपन्यास अपनी लालित्यपूर्ण भाषा, सधे हुए कथानक, प्रकृति और परिवेश के अविस्मरणीय वर्णन के साथ समकालीन स्त्री के संघर्ष और विजय की अकथ कहानी कहता है. इस उपन्यास को हाल के दशकों में हिंदी साहित्य में परिष्कृत भाषा वाली एक महत्त्वपूर्ण कृति के रूप में शामिल किया जा सकता है. आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने सिनीवाली द्वारा रचित इसी अनूठी कृति 'हेति- सुकन्या: अकथ कथा' की चर्चा की है. रुद्रादित्य प्रकाशन से प्रकाशित इस उपन्यास में कुल 191 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य 300 रुपए है.