गुरुदत्त हिंदी सिनेमा के एक ऐसे नाम हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता. गुरुदत्त जैसे कलाकार सदियों में एक बार जन्म लेते हैं. उन्हें सिनेमा मेकिंग स्कूल की तरह देखा जाता है. गुरुदत्त के सिनेमा की प्रासंगिकता का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि आज तक फ़िल्मी कलाकार उनकी कला से कोई ना कोई सीख लेते रहते हैं. वहीं सिनेमा की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को भी गुरु दत्त के फ़िल्मों के बारे में बताया जाता है व उनसे प्रेरणा लेने को कहा जाता है. गुरु दत्त की फ़िल्मों में कुछ ऐसे नाम शामिल हैं जिन्हें लंबे समय से भारत में अब तक बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में शुमार किया जाता है. उनकी अमर फ़िल्म 'प्यासा' (1957) को 2005 की टाइम मैगजीन की सर्वकालीन 100 महान फ़िल्मों में शामिल किया गया था. उनकी फ़िल्में अब भी दुनिया भर के दर्शक, समीक्षक और सिनेमा के छात्र देखते और सराहते हैं, और न केवल उनकी तकनीकी गुणवत्ता की बल्कि शाश्वत रोमांसवाद और जीवन के खालीपन तथा भौतिक सफलता के उथलेपन की भी तारीफ़ करते हैं. गुरुदत्त का जीवन बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा. उनके जीवन पर बहुत सारी पुस्तकें भी लिखी गईं मगर उनके सिने दृष्टि पर गिनी-चुनी पुस्तकें ही मिलती हैं. ऐसे में जाने-माने सिने निर्देशक, सिने विद् और सिने अध्यापक अरुण खोपकर की पुस्तक 'गुरुदत्त: तीन अंकी त्रासदी' महत्त्वपूर्ण साबित होती है. गुरुदत्त का कला पक्ष और उनकी सिने दृष्टि पर यह पुस्तक अपने आप में खास है. यह पुस्तक तीसरी बार प्रकाशित हुई है. इस संस्करण का पहला अनुवाद 1986 में हुआ और अब निशिकांत ठकार के हिंदी अनुवाद से यह पुस्तक बोधि प्रकाशन के माध्यम से पाठकों के बीच आई है. यह कहना गलत नहीं होगा कि यह पुस्तक गुरुदत्त के सिनेमा में भाषा, गीत और संगीत पर एक अनूठा प्रयास है. इस पुस्तक के लेखक अरुण खोपकर विविध कलाओं पर आधारित सिनेमा तथा लेखन का कार्य कर चुके हैं. उन्हें सत्यजीत राय जीवन गौरव स्मृति सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, महाराष्ट्र फ़ाउण्डेशन पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाज़ा जा चुका है. वहीं इस पुस्तक के अनुवादक निशिकांत ठकार मराठी और हिंदी के सुविख्यात आलोचक एवं अनुवादक हैं. अब तक उनकी हिंदी-मराठी में कुल 58 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. और तो और उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी शामिल है.
आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय अरुण खोपकर की इसी पुस्तक 'गुरुदत्त: तीन अंकी त्रासदी' की चर्चा कर रहे हैं. भारतीय सिनेमा के बहाने विश्व सिनेमा पर दृष्टि डालती इस पुस्तक को बोधि प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. 318 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 450 रुपए है.