कभी नहीं सुना अंधेरों ने सुबह नहीं होने दिया
अपनी भव्यता में भी रातें असुरक्षित होती हैं
डरी हुई रातें दिलों की चुनौती नहीं बन सकतीं
एक चांद चिढ़ाता रहता है रातों की बुलन्दी को
रोम को पुनर्स्थापित करने के संकल्प में
मुसोलिनी अप्रत्याशित रूप से मारा गया
इटली के सूबे से उठा बवण्डर इतना बड़ा नहीं हो सका
कि पूरे यूरोप को कदमों तले रौंद दे
नेपोलियन बोनापार्ट लौट नहीं सका अपने वॉटरलू से
बहादुर शाह जफर को दो गज जमीन मयस्सर नहीं हुई
यार की गलियां तंग होती हैं
जीत हासिल नहीं होती अधमरे लश्कर से
बांग देता हुआ मुर्गा मुरशिद हो जाए
बादलों के आत्मप्रक्षेपण से ढका नहीं जा सकता सूरज
भोर में चाय-चाय की आवाज दूर तक जाती है
रेलवे स्टेशन के दुर्गन्ध में पनपी
इन चीखती आवाजों को मयस्सर नहीं होती जिन्दगी
किताबें चौराहों पर बेचते हुए
दुनिया बदल देने का दर्शन नहीं बांचा जा सकता
यह भी नहीं सुना भीड़ में किसी को पुकारते हुए
कोई हरकारा पथ-निर्देशक बन जाए
जो नहीं सुना उसे घटित होते नहीं देखा
जो सुनता रहा उसकी प्रामाणिकता भी सन्दिग्ध है... राजीव कुमार के सेतु प्रकाशन से प्रकाशित कविता-संग्रह 'नमी बची रहती है आखिरी तल में' की चुनिंदा रचनाएं सुनें वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक संजीव पालीवाल से.